
एक पपीहा प्यासा रहकर, बारिशों का दौर देखा ;
रोशनी में घुट गया, दीपक बुझा कर आ गया |
रोशनी में घुट गया, दीपक बुझा कर आ गया |


शाइस्तगी अंदाज में, शोहरत का ताज है नहीं ;
ताबीर से अनजान था, तस्दीक कर के आ गया |
ताबीर से अनजान था, तस्दीक कर के आ गया |





लिखना जो सीखा कभी, तो कागजो की किल्लते ;
दिल क़े कोरे पात पर, मैं ग़ज़ल लिख कर आ गया |
दिल क़े कोरे पात पर, मैं ग़ज़ल लिख कर आ गया |
छूने को परिंदा आसमां को, पर कटा कर आ गया;
परवर दिगार ए शान में, मैं सर झुका कर आ गया |
परवर दिगार ए शान में, मैं सर झुका कर आ गया |
No comments:
Post a Comment