Friday, November 25, 2011

मेरी दुल्‍हन सी रातों को

बदनाम रहे बटमार मगर,
घर तो रखवालों ने लूटा
मेरी दुल्‍हन सी रातों को,
नौलाख सितारों ने लूटा
दो दिन के रैन-बसेरे में,
हर चीज़ चुरायी जाती है
दीपक तो जलता रहता है,
पर रात पराई होती है
गलियों से नैन चुरा लाई,
तस्‍वीर किसी के मुखड़े की
रह गये खुले भर रात नयन,
दिल तो दिलदारों ने लूटा

जुगनू से तारे बड़े लगे,
तारों से सुंदर चाँद लगा
धरती पर जो देखा प्‍यारे
चल रहे चाँद हर नज़र बचा
उड़ रही हवा के साथ नज़र,
दर-से-दर, खिड़की से खिड़की
प्‍यारे मन को रंग बदल-बदल,
रंगीन इशारों ने लूटा
हर शाम गगन में चिपका दी,
तारों के अधरों की पाती
किसने लिख दी, किसको लिख दी,
देखी तो, कही नहीं जाती
कहते तो हैं ये किस्‍मत है,
धरती पर रहने वालों की
पर मेरी किस्‍मत को तो
इन ठंडे अंगारों ने लूटा

जग में दो ही जने मिले,
इनमें रूपयों का नाता है
जाती है किस्‍मत बैठ जहाँ
खोटा सिक्‍का चल जाता है
संगीत छिड़ा है सिक्‍कों का,
फिर मीठी नींद नसीब कहाँ
नींदें तो लूटीं रूपयों ने,
सपना झंकारों ने लूटा

वन में रोने वाला पक्षी
घर लौट शाम को आता है
जग से जानेवाला पक्षी
घर लौट नहीं पर पाता है
ससुराल चली जब डोली तो
बारात दुआरे तक आई
नैहर को लौटी डोली तो,
बेदर्द कहारों ने लूटा ।

Tuesday, November 1, 2011

गम

मौसम को इशारो से बुला क्यो नही लेते
रुठा है अगर वो तो मना क्यो नही लेते
दीवाना तुम्हारा कोई गैर नही है
मचला भी तो सीने से लगा क्यो नही लेते
खत लिख के कभी और कभी खत को जलाकर
तन्हाई को रंगीन बना क्यों नही लेते
तुम जाग रहे हो मुझको अच्छा नही लगता
चुपके से मेरी नींद चुरा क्यो नही लेते
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जो दिल ने कही लब पे कहाँ आई है देखो
अब मेहफिल-ए-यारा मे भी तन्हाई है देखो
फुलो से हवा भी कभी घबराई है देखो
घुचो से भी शबनम कभी कतराई है देखो
अब ज़ौक़-ए-तलब वजह-ए-जुनून ठहर गया है
और अर्ज़-ए-वफा बाईस-ए-रुसवाई है देखो
गम अपने ही अश्को का खरीदार हुआ है
दिल अपनी ही हालत का तमाशाई है देखो
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प्यार के उजाले मे गम का अंधेरा आता क्यो है
जिसे हम चाहे वही हमे रुलाते क्यो है
अगर वो मेरा नसीब नही
तो खुदा ऐसे लोगो से मिलाता क्यो है

दर्द

तुम्हे भूल जाऊ ये होता नही
कोई वक़्त हो दर्द सोता नही
ना हो जाओ बदनाम तुम इस लिये
मै रो रो के दामन भीगोता नही
ये वो फसल है जो उगे खुद-बा-खुद
कोई दर्द के बीज बोता नही
ये माना के तूफान का ज़ोर है
मै घबरा के कश्ती डुबोता नही

बिजली

अब तो घबरा के ये कहते है के मर जायेंगे
मर के भी चैन ना पाया तो किधर जायेंगे
तुम ने ठहराई अगर गैर के घर जाने की
तो इरादे यहाँ कुछ और ठहर जायेंगे
हम नही वो जो करे खून का दवा तुझ पर
बलकी पूछेगा खुदा भी तो मुकर जायेंग़े
आग दोज़ख की भी हो जायेगी पानी पानी
जब ये आसी अर्क़-ए-शर्म से तर जायेंग़े
शोला-ए-आह को बिजली की तरह चमकाऊ
पर मुझे डर है, कि वो देख के डर जायेंगे
लाये जो मस्त है तुरबत पे गुलाबी आंखे
और अगर कुछ नही, दो फूल तो डर जायेंगे
नही पायेगा निशान कोई हमारा हरगीज़
हम जहाँ से रवीश-ए-तीर-ए-नज़र जायेंगे
पहुचेंगे रहगुज़र-ए-यार तलक हम क्योकर
पहले जब तक ना दो आलम से गुज़र जायेंग़े

मुक्कमल खत

उसे मैने ही लिखा था
के लहजे बर्फ हो जाये तो पिगला नही करते
परींदे डर के उड जाये तो फिर लौटा नही करते
उसे मैने ही लिखा था
यक़ीन उठ जाये तो शायद कभी वापिस नही आता
हवाओ का कोई तूफान कभी बारिश नही लाता
उसे मैने ही लिखा था
के शीशा टूट जाये तो कभी फिर जुड नही पाता
जो रास्ते से भटक जाये वो वापिस मुड नही पाता
उसे कहना अधुरा खत उसे मैने ही लिखा था
उसे कहना के दीवाने मुक्कमल खत लिखा नही करते

बहाना

साथ जो है तुम्हारा तो हर पल सुहाना लगता है
ना होगा कभी कोई गम ऐसा मुझे लगता है
जानते तो नही है के मुस्तक़बिल मे लिखा क्या है
गर जो तुम साथ ना हुए तो डर लगता है
इस पहेली को भुझाने मे एक ज़माना लगता है
है सच ये के उदास हो तुम मुझ से दुर होकर
पर हंसता चेहरा तुम्हारा एक बहाना सा लगता है

आईना-ए-दिल

येही वफा का सिलाह है, तो कोई बात नही
ये दर्द तुम ने दिया है, तो कोई बात नही
येही बहुत है के तुम देखते हो साहिल से
सफीना डूब रहा है, तो कोई बात नही
रखा था अशियाना-ए-दिल मे छुपा के तुमको
वो घर तुमने छोड दिया है तो कोई बात नही
तुम ही ने आईना-ए-दिल मेरा बनाया था
तुम ही ने तोड दिया है तो कोई बात नही
किसे मजाल कहे कोई मुझ को दीवाना
अगर ये तुमने कहा है तो कोई बात नही

सवाल

ये दर्द मिट गया तो फिर?
ये ज़ख्म सिल गया तो फिर?
बिछड कर सोचता हूँ मै,
वो फिर से मिल गया तो फिर?
मै तित्लियो के शहर मे,
रहूँ तो मुझ को फिक्र है
वो फूल जो खिला नही,
वो फूल खिल गया तो फिर?
तुझे भी कुछ नही मिला,
मुझे भी कुछ नही मिला,
तमाम उम्र के लिये,
ये दर्द मिल गया तो फिर?
मै इस लिये तो आज तक,
सवाल भी ना कर सका
अगर मेरे सवाल का,
जवाब मिल गया तो फिर?

रात के सन्नाटे मे

किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा
एक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगा
कोई जहाँ मेरे लिए मोती भरी सीपियाँ चुनता होगा
वो किसी और दुनिया का किनारा होगा
काम मुश्किल है मगर जीत ही लूगाँ
किसी दिल को मेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगा
किसी के होने पर मेरी साँसे चलेगीं कोई तो होगा
जिसके बिना ना मेरा गुज़ारा होगा
देखो ये अचानक ऊजाला हो चला,
दिल कहता है कि शायद किसी ने धीमे से मेरा नाम पुकारा होगा
और यहाँ देखो पानी मे चलता एक अन्जान साया,

शायद किसी ने दूसरे किनारे पर अपना पैर उतारा होगा
कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे
शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा
अब तो बस उसी किसी एक का इन्तज़ार है,
किसी और का ख्याल ना दिल को ग़वारा होगा
ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना
मेरा नाम ग़र ये खेल ही दोबारा होगा

Friday, August 26, 2011

दीपावली

जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना

Wednesday, August 17, 2011

माँ


माँ शब्द दिल से कहते ही मानों हमारा सारे दुःख दूर हो जाते है |
मानों हमें दुनिया का सुख मिल जाता है !"माँ " हमें सबसे जयादा
प्यार करती है ||
माँ घर मे सबसे पहले उठती है /सबके लिय खाना आदि बनाती है /
सबके जरुरत का ध्यान रखती है/समय समय पर सब का काम करती है
माँ प्यार , दया और ममता की मूर्ति है ! माँ कभी अपने कर्तब्यो
से मुह नाहे मोड़ती |वह घर मे सबको मिलकर रहना है |बच्चो के सुख
को ही अपना सुख मानतीहै |वह कभी किसी से गुस्सा नही करती |
कोई गलत बात बोले तो भी चुप हीरहती है |फिर भी उसका भला ही चाहती है|
हमने भगवान को नही देखा |पर हम अपनी माँ में ही भगवान को देखसकते ह''

दरिया में सफीने से











परछाइयों से इस कदर हम आज डर गए |
दरिया में सफीने से हम खुद ही उतर गए ||
कुछ और नहीं ज़ब्त की छतरी क़े सहारे |
अँधेरे थे तूफां में हम घर से निकल गए ||
जो वक़्त ने कही वो नसीहत की बात थी |
उतरे जो आसमान से फरिस्ते बदल गए ||
मौसम क़े उसूलों में भी बदलाव आ गए |
बेरंग बारिशों क़े महीने गुज़र गए ||
किस्मत ने हाथ देख कर आँखें तरेर लीं |
अरमान हिकारत क़े जहर पी क़े मर गए ||
सीने में उस नादान की गोयाईयाँ तो हैं |
मासूम सा दिल था हम जिससे बिछड़ गए ||
अफसाने सुनाते थे जो पाकीज़ा किनारे |
तूफां-ए-हवादिस से किनारे दहल गए ||
लगता है तेरे लफ्ज़ भी खामोश हो गए |
क्या अज़ाब क़े झोंके गुज़र गए ||

परिंदा आसमां को


 
 एक पपीहा प्यासा रहकर, बारिशों का दौर देखा ;
रोशनी में घुट गया, दीपक बुझा कर आ गया |
 

 

शाइस्तगी अंदाज में, शोहरत का ताज है नहीं ;
ताबीर से अनजान था, तस्दीक कर के आ गया |
  


 




 




लिखना जो सीखा कभी, तो कागजो की किल्लते ;
दिल क़े कोरे पात पर, मैं ग़ज़ल लिख कर आ गया |
छूने को परिंदा आसमां को, पर कटा कर आ गया;
परवर दिगार ए शान में, मैं सर झुका कर आ गया |

Khusiram Verma




परछाइयों से इस कदर हम आज डर गए |
दरिया में सफीने से हम खुद ही उतर गए ||
कुछ और नहीं ज़ब्त की छतरी क़े सहारे |
अँधेरे थे तूफां में हम घर से निकल गए ||
जो वक़्त ने कही वो नसीहत की बात थी |
उतरे जो आसमान से फरिस्ते बदल गए ||
मौसम क़े उसूलों में भी बदलाव आ गए |
बेरंग बारिशों क़े महीने गुज़र गए ||
किस्मत ने हाथ देख कर आँखें तरेर लीं |
अरमान हिकारत क़े जहर पी क़े मर गए ||
सीने में उस नादान की गोयाईयाँ तो हैं |
मासूम सा दिल था हम जिससे बिछड़ गए ||
अफसाने सुनाते थे जो पाकीज़ा किनारे |
तूफां-ए-हवादिस से किनारे दहल गए ||
लगता है तेरे लफ्ज़ भी खामोश हो गए |
‘शैलेश’ क्या अज़ाब क़े झोंके गुज़र गए ||

लखनऊ


मुस्कुराइये कि आप लखनऊ मे हैं -
यह पंक्ति लखनऊ मे कई स्थानों पर लिखी मिल जाती है।















लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध">अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यहाँ के शिया">शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत, और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। [2] इसे पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है।[3] आज का लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमे एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष पंद्रह में से एक है।

दाग


समुन्दर में तूफानों को उठते हुए देखा,
नदी तालों को भी उफनाते हुए देखा,
अश्क से दामन को भिगोते हुए देखा,
पर उस पर लगे दाग को मिटते नहीं देखा.

जिंदगी को जिन्दादिली से जीते देखा,
मौत को भी हंस कर गले लगाते देखा,
जिंदगी से मौत की टकराहट देखा,
पर जिंदगी व मौत को साथ निभाते नहीं देखा.

दोस्त को दुश्मन के गले लगते देखा,
पीठ में छुरा उन्हें भोंकते देखा,
गम के अंधेरों में दोनों को सिसकते देखा,
नदी के दो पाटों की तरह दिल को मिलते नहीं देखा.

चाँद तारों को जमीन पर उतरते देखा,
पंख परवाजों को आसमान को छूते देखा ,
धरती में ही स्वर्ग कहीं बनते हुए देखा,
अम्बर को धारा से मिलते नहीं देखा.

हमने बचपन भी देखा पचपन भी देखा,
बीती हुयी जिंदगानी देखा,
बहती हुयी रवानी देखा,
पर कहते हैं जिसे किस्मत उसको ही नहीं देखा.

मज़ार


आये थे मज़ार पर वो, दुनियां बदल जाने के बाद। सर झुकाया भी तो, हमारे गुज़र जाने के बाद। अरमां ये थे रू-ब-रू हो, कुछ तो कह देते । बुदबुदाए भी आखिर तो , दम निकल जाने के बाद।



ऐसा भी कर देते हैं लोग


जब कुछ मिलता नही चर्चा मे बने रहने को |
मासूम से इश्क को फसाद बना देते है लोग ||

जिसको पाने में तमाम उम्र लग जाती है |
उसे पल भर में ही खाक बना देते है लोग ||

बेपनाह प्यार का दावा करते है जिससे|
गुजर जाने पे चंद लम्हों मे भुला देते है लोग ||

समझाती हूँ अक्सर अपने इस नादां दिल को |
मोहब्बत की आड में सब कुछ चुरा लेते है लोग||

तनहा रहना भी खटकता है जमाने के ठेकेदारों को |
और दामन थाम लो तो शोर मचा देते है लोग ||

सब कुछ लूट कर भी जब जी नही भरता |
पलकों में सजे ख्वाब तक जला देते है लोग||

इसी को प्यार कहते हैं..

 नज़र मुझसे मिलाती हो तो तुम शरमा-सी जाती हो
इसी को प्यार कहते हैं, इसी को प्यार कहते हैं।
 तुम्हारे प्यार का ऐसे हमें इज़हार मिलता है
हमारा नाम सुनते ही तुम्हारा रंग खिलता है
और फिर साज़-ए-दिल पे तुम हमारे गीत गाती हो।
इसी को प्यार कहते हैं, इसी को प्यार कहते हैं।
 जबाँ ख़ामोश है लेकिन निग़ाहें बात करती हैं
अदाएँ लाख भी रोको अदाएँ बात करती हैं।
नज़र नीची किए दाँतों में ____ को दबाती हो।
इसी को प्यार कहते हैं, इसी को प्यार कहते हैं।
 तुम्हारे घर में जब आऊँ तो छुप जाती हो परदे में
मुझे जब देख ना पाओ तो घबराती हो परदे में
ख़ुद ही चिलमन उठा कर फिर इशारों से बुलाती हो।
इसी को प्यार कहते हैं, इसी को प्यार कहते हैं।

छुपाने से मेरी जानम कहीं क्या प्यार छुपता है
ये ऐसा मुश्क है ख़ुशबू हमेशा देता रहता है।
तुम तो सब जानती हो फिर भी क्यों मुझको सताती हो?
इसी को प्यार कहते हैं, इसी को प्यार कहते हैं।