मौसम को इशारो से बुला क्यो नही लेते
रुठा है अगर वो तो मना क्यो नही लेते
दीवाना तुम्हारा कोई गैर नही है
मचला भी तो सीने से लगा क्यो नही लेते
खत लिख के कभी और कभी खत को जलाकर
तन्हाई को रंगीन बना क्यों नही लेते
तुम जाग रहे हो मुझको अच्छा नही लगता
चुपके से मेरी नींद चुरा क्यो नही लेते
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जो दिल ने कही लब पे कहाँ आई है देखो
अब मेहफिल-ए-यारा मे भी तन्हाई है देखो
फुलो से हवा भी कभी घबराई है देखो
घुचो से भी शबनम कभी कतराई है देखो
अब ज़ौक़-ए-तलब वजह-ए-जुनून ठहर गया है
और अर्ज़-ए-वफा बाईस-ए-रुसवाई है देखो
गम अपने ही अश्को का खरीदार हुआ है
दिल अपनी ही हालत का तमाशाई है देखो
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प्यार के उजाले मे गम का अंधेरा आता क्यो है
जिसे हम चाहे वही हमे रुलाते क्यो है
अगर वो मेरा नसीब नही
तो खुदा ऐसे लोगो से मिलाता क्यो है
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