Tuesday, November 1, 2011

आईना-ए-दिल

येही वफा का सिलाह है, तो कोई बात नही
ये दर्द तुम ने दिया है, तो कोई बात नही
येही बहुत है के तुम देखते हो साहिल से
सफीना डूब रहा है, तो कोई बात नही
रखा था अशियाना-ए-दिल मे छुपा के तुमको
वो घर तुमने छोड दिया है तो कोई बात नही
तुम ही ने आईना-ए-दिल मेरा बनाया था
तुम ही ने तोड दिया है तो कोई बात नही
किसे मजाल कहे कोई मुझ को दीवाना
अगर ये तुमने कहा है तो कोई बात नही

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