Wednesday, October 30, 2013

अंधियारा भागा... लो आई दिवाली

जब आसमान में अमावस का गहरा अंधेरा छाया होता है, तब रोशनी की जगमग और खिलखिलाहट के साथ धरती पर उजाले की बरसात होती है। जब चांद का कहीं अता-पता नहीं होता, उस समय सोने-चांदी, मिट्टी, पीतल, तांबे के घी-तेल से भरे दीए पूरे देश को जगमग करते हैं। मोमबत्तियां रोशनी बिखेरती हैं। रंग-बिरंगे बल्बों की लडियों से हर दीवार, कोना रोशन होता है। घर-दरवाजे रंगोलियों से सजे रहते हैं। बंदनवार लगाए जाते हैं। लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां साथ सजती हैं। लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा का अर्थ भी शायद यही है कि लक्ष्मी प्राप्त करने के लिए जो बुद्धि चाहिए, उसे गणेशजी प्रदान करें और धनवान बनने की राह में जो विघ्न बाधाएं आएं, उन्हें भी दूर करें, आखिर विघ्न विनाशक जो ठहरे।


पूड़ी, पकवान, छोले-भठूरे, मिठाइयों, फलों, नमकीन तरह-तरह की चॉकलेट, बिस्कुटों से घर महक रहा है। फूलों की मालाएं और अन्य तरह की सजावट से घर की रंगत ही बदल गई है। वैसे तो इस अवसर पर घर का क्या-क्या नहीं बदला है। देखा जाए तो दिवाली और सफाई का गहरा सम्बन्ध है। लक्ष्मी के स्वागत के लिए घर के कोने-कोने को चमकाना जरूरी है। हर दीवार की ताजगी और चमक बता रही है कि अभी-अभी रंग-रोगन की कूचियां इन पर से होकर गुजरी हैं। परदों, कुशन कवर, सोफा कवर ने इन दीवारों की रंगत में और चार-चांद लगा दिए हैं, क्योंकि वे भी तो नए हैं। सफाई का सम्बन्ध बहुत गहरे हमारे से जुड़ा है। अगर हम और परिवार के सभी सदस्य स्वस्थ, प्रसन्न रहें, अपने कामकाज में मेहनत से लगें, तो यह मेहनत परिणाम भी लाती है और यह परिणाम धन अर्थात् लक्ष्मी के रूप में ही हमारे सामने आता है। घर के सामने नए मॉडल की बड़ी कार खड़ी है। घर के कई लोगों ने अपना मोबाइल भी बदला है। मोबाइल और कार बदलने की जिद और चाहत घर के छोटे सदस्यों की रही है। इन दिनों कार, मोबाइल और कम्प्यूटर के चुनाव में ये नन्हे सदस्य परिवार के बड़ों से आगे हैं। इन नन्हे-मुन्नों में बहुतों ने अपने लिए प्ले स्टेशंस भी खरीदे हैं। तरह-तरह की मशहूर ब्ा्रांड्स के कपड़े भी उनकी अलमारी में सजे हैं। घर की महिलाओं ने भी मनपसंद खरीदारी की है। दिवाली तो है ही, साथ में गोवर्धन और भैयादूज भी तो है। धनतेरस के दिन के लिए नए बरतन तो पहले ही खरीद लिए गए हैं।


नई कारों, मोबाइल, जेवरों, कपड़ों, खिलौने, ब्ा्रांडेड कपड़ों, कॉस्मेटिक्स, जूते-चप्पल, नमकीन, खील-बताशों, मीठे सेवों, नमकपारों से बाजार भरे पड़े हैं। अधिकांश उत्पादों पर भारी-भरकम छूट मिल रही है। मेहंदी वाले और ब्यूटी पालर्स ओवरबुक्ड हैं। मेहंदी और पार्लर वाले कई गुना अधिक फीस पर घर आने को तैयार हैं। कई जगहों पर दिवाली के स्पेशल ऑफर के नाम पर छूट भी मिल रही है। अक्सर खरीदार और विके्र ता दिवाली का इंतजार करते हैं। मिठाई की दुकान पर इतनी भीड़ है कि दो घंटे में भी नम्बर आ जाए तो बड़ी बात होगी। पटाखों की दुकानों पर भी भीड़ है। हालांकि कहते हैं कि "से नो टू क्रैकर्स कैंपेन" का पटाखों की बिक्री पर असर पड़ा है। जब से मोबाइल का चलन बढ़ा है, ग्रीटिंग्स मोबाइल पर ही भेजे जाते हैं। इतने मैसेज होते हैं कि नेटवर्क जाम हो जाता है। मोबाइल कंपनियां भी मौके का लाभ उठाने के लिए मैसेज के रेट बढ़ा देती हैं। पिछले कुछ सालों से दिवाली के अवसर पर चॉकलेट की बिक्री में भी भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। बाजार में, मॉल्स में, सिनेमा हॉल्स में भारी भीड़ है। दिवाली के मौके के इंतजार में कई फिल्म वाले अपनी फिल्म रिलीज करने को बैठे थे। दिवाली माने छुट्टी, छुट्टी माने ज्यादा दर्शक और फिल्म हिट। रेलगाडियों, बसों में पैर रखने के लिए जगह नहीं है। जितनी टिकट्स का रिजर्वेशन है, उससे कई गुना लोग गाडियों में सवार हैं। लोग अपने-अपने घर जा रहे हैं। दिवाली का मौका जो है। रेस्टोरेंट, होटल्स की बुकिंग महीनों पहले की जा चुकी है। आखिर खुशी का मौका जो है। एक-एक जगह कई-कई पार्टीज का आयोजन है। युवा वर्ग भी पीछे नहीं है। बहुत-सी जगहों पर दिवाली मेले लगे हैं। कुछ लोग कहते हैं कि त्योहारों में अब पहले जैसी बात नहीं रही। दिखावा बढ़ा है, हार्दिकता कम हुई है। शुभकामना संदेशों में भी औपचारिकता ज्यादा रह गई है। दिल से दिल की बात में कमी आई है।


मौका है उत्सव का
वैसे इन दिनों त्योहार का मतलब "ईट, ड्रिंक एंड मैरी" ही रह गया है, लेकिन युवा वर्ग की मानें तो छुट्टी और त्योहार का मतलब ही आनंद और मौज-मस्ती है। इन दिनों युवाओं की नौकरियों का जो आलम है, उसमें वे 15 से 18 घंटे तक काम करते हैं। काम के वक्त उन्हें सांस लेने की भी फुरसत नहीं होती। ऎसे में जब कोई उत्सव मनाने का मौका आता है, तो वे रूटीन से हटकर उसे भरपूर जीना चाहते हैं। उत्सव मनाना, अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की परेशानियों को हल करने, उनसे दूर जाने का एक आसान तरीका भी है। वैसे भी जब किसी को कोई बड़ी खुशी मिलती थी या कोई खास मौका होता था तो कहते थे, आज तो दिवाली हो रही है।

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