अगली बार कहां से लाओगे कन्याएं
नौवरात्र के अंतिम दिन सभी मां दुर्गा के नौ स्वरूप के रूप में नौ कन्याओं को भोज कराते हैं। इस दिन ऐसी कन्याओं की व्यस्तता देखते ही बनती है, कोई कहीं भाग रही होती हैं तो किसी का पेट भर गया होता है तो कोई घर से निकलने को तैयार नहीं होतीं। फिर भी आप दौड़ भाग कर कैसे भी करके नौ कन्याओं को जब ले आते हैं तो खुद को किसी जंग के विजेता से कम नहीं समझते। समङो भी क्यूं ना, इतनी मशक्कत करके दूसरे के घर पर घंटो पहरा देने के बाद जो आपको यह सफलता हाथ लगी है। खैर इस बार तो आपने जैसे-तैसे करके नौ देवियों को भोज करा दिया पर क्या अगली बार आपको यह सफलता मिल पायेगी? यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि जिस तरह समाज में महिलाओं या लड़कियों के साथ व्यवहार हो रहा है और उनका अनुपात कम हो रहा है,उससे ऐसी आशंका तो उत्पन्न होती ही हैं। नौ देवियों के साथ होने वाले नौ मुख्य र्दुव्यवहारों से हम आपको अवगत कराते हैं- कन्या भ्रूण हत्या, रेप, दहेज के लिए हत्या, छेड़छाड़, ईल वीड़ियो द्वारा बदनाम करना, तेजाब से हमला, परिवार का दबाब, कुपोषण, घरेलू हिंसा। ये वे नौ तरीके हैं जिनसे किसी भी स्त्री को आज के युग में प्रताड़ित किया जा रहा है। कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध की बात की जाय तो रिपोर्ट बताती है कि कैसे अवैध रूप से चल रहे कुछ डॉक्टरों के क्लीनिक्स पर लिंग परिक्षण रोक कानून के बाद भी धड़ल्ले से गर्भ में पल रहे बच्चे के बारे में जानकारी दी जाती है। इसका असर यह होता है कि अधिकतर मामलों में यदि पेट में बेटी पल रही होती है तो उसे गर्भ में ही मार दिया जाता है जो कि कानूनी तौर पर अपराध है और आईपीसी की धारा 315 में इसके लिए सजा का भी प्रावधान है फिर भी लोग इस तरह के घोर अमानवीय कृत्य करते हैं। सर्वे में पाया गया कि इस तरह के कार्यों को करने वाले ज्यादातर लोग पढ़े-लिखे, सभ्य घरों से ताल्लुक रखने वाले हैं। कुछ ने एक बेहद हास्यापद एवं दुर्भाग्य पूर्ण बयान भी दिए कि बेटी का समाज द्वारा शोषण हो इससे अच्छा उसको जन्म ही न दिया जाये। यह बयान निंदा योग्य है पर कहीं न कहीं ये हमारे समाज की बुराई को भी उजागर कर रहा है। इस संदर्भ में एक बात याद आती है कि एक बार एक स्त्री एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ के पास गई और बोली, मैं गर्भवती हूं, मेरे गर्भ में एक बच्ची है । मैं पहले से एक बेटी की मां हूं और मैं किसी भी दशा में दो बेटियां नहीं चाहती। इस गर्भ को गिराने में मेरी मदद करें। डाक्टर बोला, हम एक काम करते हैं आप दो बेटियां नहीं चाहती न तो पहली बेटी को मार देते हैं, जिससे आप इस अजन्मी बच्ची को जन्म दे सके। वैसे भी हमको एक बच्ची को मारना है तो पहली वाली को ही मार देते हैं न। तो वह स्त्री तुरंत बोली न न डाक्टर!!! हत्या करना गुनाह है पाप है और वैसे भी मैं अपनी बेटी को बहुत चाहती हूं। उसको खरोंच भी आती है तो दर्द का अहसास मुङो होता है। डाक्टर तुरंत बोला पहले कि हत्या करो या अभी जो जन्मा नहीं उसकी हत्या करो दोनों गुनाह है, पाप हैं। यह बात उस स्त्री को समझ आ गई । इस प्रसंग से भी समझ जा सकता है कि जो लोग इस अपराध को अंजाम दे रहे हैं वे किसी की हत्या कर रहे हैं, ये बात उन्हें भी समझ आ जाए।
दूसरा मसला रेप का है जो आज भारतीय समाज में जंगल में आग की तरह फैल रहा है। यह दिन-प्रतिदिन और ज्यादा बढ़ता जा रहा है। हाल का ही, पांच साल की बच्ची से उसके पड़ोसी का रेप करना या फिर 8 साल की गुड़िया का उसके मामा द्वारा रेप का मामला हो, ऐसे सभी मामले दरिंदगी की इंतेहा को पार कर चुके लोगों से हमें मुखातिब कराते हैं। कहते हैं इंसान पहले जानवर था फिर काफी प्रयासों के बाद वह इंसान बन सका पर आज इंसान एक बार फिर ऐसे कृत्य कर रहा है जो उसे पुन: जानवरों की श्रेणी में ला रहा है। इन अपराधों को रोकने के लिए दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म के बाद सरकार द्वारा महिलाओं के लिए लाया गया बिल इस दिशा में एक मजबूत कदम है। यह तब और कारगर होगा जब यह प्रभावी ढंग से लागू हो। दिल्ली आज देश की राजधानी होने के साथ ही दुष्कर्मियों की भी राजधानी बनती जा रही है। यहां देश के सर्वाधिक यानि प्रतिदिन 2 रेप केस होते हैं। दुष्कर्म के दोषी को फांसी की सजा के प्राविधान ने ऐसा करने वालों में कुछ डर जरूर पैदा किया होगा। इसके बाद यदि दहेज को लेकर बात करें तो यहां भी हालात बेकाबू हैं। आज शादी दो दिलों, दो परिवारों के मिलन का प्रतीक नहीं रह गई है। अब शादी के मायने बदल रहे हैं। लोग अब शादी दहेज के लोभ में करते हैं,जो कानूनी जुर्म है और आईपीसी 498 (अ) में सजा योग्य है। शादी आज दो दिलों के मेल से ज्यादा स्टेटस का प्रतीक बन गयी है। जब तक मध्यमवर्गीय लड़के को कार नहीं मिल जाती उसे अपनी तौहीन महसूस होती है।
कुछ तो न चाहते हुए भी झूठी शान-ओ-शौकत के चलते दहेज की तरफ भागते हैं क्योंकि अगर एक आम आदमी के लड़के की शादी में चार पहिया गाड़ी नहीं मिलती है, तो समाज क्या कहेगा का डर उसे दहेज की ओर खींच ले जाता है। यदि यह मांग पूरी नहीं हो पाती तो शादी या तो बीच में ही तोड़ दी जाती है या फिर शादी के बाद लड़की को अनेक प्रताड़नाएं देते हुए मायके वालों से दहेज लाने की मांग की जाती है और यदि दहेज के भूखे इन भेड़ियों की मांग एक बार पूरी कर दी जाती है तो फिर दिनों-दिन इनकी ये नाजायज मांगंे बढ़ती ही जाती हैं। दूसरी ओर अगर इनकी मांग पूरी नहीं होती तो लड़की को या तो जला दिया जाता है या उसे इतना डराया-धमकाया जाता है कि वह खुद ही मौत को गले लगा लेती है। यह भी आइपीसी के 304 (ब) में सजा योग्य है। यह हमारे समाज की विडंबना ही है कि हमारे संस्कृति प्रधान भारत में इस तरह की घटनाएं देखने को मिलती हैं। दहेज भी एक कानूनी अपराध है पर बेचारी लड़कियां इस अपराध की भेंट चढ़ जाती हैं।
छेड़छाड़, ईल वीडियो द्वारा बदनाम करना भी आज के आधुनिक जमाने में तेजी से बढ़ रहा है। सोशल नेटवर्कि ग साइट का गलत प्रयोग और इसकी अधूरी समझ इनके मुख्य कारण हैं। मुरादाबाद की प्रीति का एक ईल वीडियो अपलोड कर उसे बदनाम कर दिया गया जिसके बाद उसने मौत को गले लगा लिया। यह घटना सिर्फ प्रीति के साथ ही नहीं हुई है, ऐसे तमाम केस साइबर क्राइम डिपार्टमेंट के पास हैं जहां लड़कियां इस तरह की घटना का निशाना बनीं। हम जिस कोख में पलते हैं वह स्त्री की, जिस धरती पर जीवन व्यतीत करते वह नारी स्वरूप। गंगा मां का जल और गौ माता का दूध पीकर हम अपना जीवन जीते हैं तो फिर हम उसी स्त्री को बदनाम क्यों करते हैं? तेजाब का हमला, परिवार का लड़को जैसा बनने का दबाब, कुपोषण भी एक स्त्री ही सहे, शराब पीकर पति का मारना भी औरत ही सहे। जबकि तेजाब से हमला करना आइपीसी 364 (अ) के अंतर्गत आता है और पति द्वारा पत्नी को प्रताड़ित करना घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत आता है। इसके बाबजूद दरिंदों में कोई डर नहीं है। आज जनसंख्या की गणना करने वाली आरजीआइ के एसआरएस के आंकड़े बताते हैं कि अब प्रति 1000 पर 914 लड़कियों का अनुपात रह गया है, जो पिछले वर्ष के मुकाबले 1 कम है। यह गंभीर चिंता का विषय है।
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