बदल रही है रामलीला
व्यस्त जीवनशैली ने उत्तर भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में भगवान राम के चरित्र को रंगमंच पर उतारने की परंपरा को काफी हद तक बदलकर रख दिया है। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक धरोहर ‘रामलीला’ के प्रति लोगों की रुचि लगातार कम होती जा रही है। यही वजह है कि ‘रामलीला‘ को आज न तो पर्याप्त संख्या में दर्शक मिल रहे हैं और न कलाकार। दिल्ली स्थित लाल किला के पास रामलीला का मंचन करने वाली धार्मिंक लीला कमेटी के अध्यक्ष वेद प्रकाश गोयल के अनुसार, व्यस्त जीवनशैली के कारण लोग परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं। ‘रामलीला‘ की परंपरा भी इससे अछूती नहीं रह गई है। एक जमाना था जब गली-मोहल्ले में भी ‘रामलीला‘ मंचन होता था। लेकिन आज हालत इतर हैं। आज इसे न तो पर्याप्त संख्या में दर्शक मिल रहे हैं और न कलाकार। राम कला मंदिर के प्रमुख आनंद खजूरिया कहते हैं, ‘आज रामलीला के मंचन के लिए कलाकार भी बमुश्किल मिल रहे हैं। पहले ‘रामलीला‘ के दौरान किसी भी पात्र को निभाने के लिए कई कलाकार लाइन में लगे रहते थे लेकिन आज केवल मुख्य पात्र निभाने के लिए ही वे आगे आते है।‘ विश्व धरोहर टीवी, इंटरनेट और पढ़ाई के बोझ के कारण आज के बच्चों तथा युवाओं में रामलीला के प्रति रुझान काफी कम हो गया है। गौरतलब है कि यूनेस्को ने रामलीला की लोकप्रियता और सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए वर्ष 2005 में इसे विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया था। यूनेस्को के अनुसार, दशहरा के मौके पर गांवों, कस्बों और शहरों में आयोजित की जाने वाली ‘रामलीला’ असत्य पर सत्य की विजय को प्रदर्शित करने का महत्वपूर्ण माध्यम है। बदला स्वरूप ‘राम लछिमन जानकी जै बोलो हनुमान की., हे राम तुम्हारे कहने से मैं लंकापुरी को जाता हूं, आने-जाने में देर नहीं सीता का पता लगाता हूं..।‘ धनुष बाण की टंकार और मंच पर पैर पटकते हुंकारों से भरे फिजा में गूंजते सं वादों के बीच रामलीला प्रस्तुतियों ने जोर पकड़ लिया है। रामलीला समितियों के किरदार बदल रहे हैं। मंच पंडाल को हर बार पिछली बार से अलग दिखाने की तैयारियां भी जारी हैं। पटकथा और संवाद में बदलाव रामलीला के स्वरूप में भी बदलाव दिखने लगा है। केशव के कठिन छंदों, चौपाइयों, दोहों से तैयार मौसमगंज रामलीला की पटकथा इस बार दर्शकों को नए कलेवर में दिख रही है। श्री मौसमगंज रामलीला एवं नाट्य समिति डालीगंज के संरक्षक तेज प्रकाश गुप्ता ने बताया कि 134 बरसों से चली आ रही रामलीला की मूल स्क्रिप्ट दशकों से ही चली आ रही है। करीब 90-100 साल पहले उसमें कुछ बदलाव किया गया था। फिर भी उसमें मौजूद छंद, सोरठे, दोहे आदि काफी कुछ आज आम दर्शकों की समझ में नहीं आते। पिछले कुछ बरसों से इसमें बदलाव महसूस किया जा रहा था। इसे देखकर इस बार रिहर्सल के साथ-साथ स्क्रिप्ट में भी बदलाव जारी है। आज रामलीला के संवाद आम भाषा में ढाले जा रहे हैं। कुछ शायराना अंदाज, कुछ तुकबंदी भी जोड़ी जा रही है। डिजिटल हुई रामलीला अब तक दर्शक टीवी व मंच पर ही रामलीला का मंचन देखते थे, लेकिन अब रुपहले परदे पर भी रामलीला को उतारा गया है। हर बार की तरह इस बार भी दिल्ली के मंगोलपुरी के तालाब मंदिर, सिनेमा मैदान में दशर्क हाइटेक रामलीला का आनंद ले रहे हैं। वत्स क्लब रामलीला कमेटी ने इस बार खास इंतजाम किये हैं। क्लब की ओर से रामलीला का पूरा मंचन 70 एमएम के परदे पर उतारा गया है। इसे प्रोजेक्टर के माध्यम से दिखाया जा रहा है। रोज नए-नए हाइटेक साउंड के साथ दर्शक 70एमएम के परदे पर रामलीला का मंचन देख रहे हैं। मोबाइल पर लाइव सीता हरण, जटायु वध या फिर लंका दहन, मंच पर होने वाली रामलीला के इन दृश्यों को अब आप घर बैठे लाइव देख सकेंगे। लखनऊ की सबसे ऐतिहासिक ऐशबाग रामलीला समिति इस बार रामलीला का इंटरनेट पर सीधा प्रसारण करने जा रही है, जिसे स्मार्ट फोन पर भी लाइव देखा जा सकेगा। 3जी यूजर समिति की वेबसाइट पर जाकर लिंक कर इस रामलीला का सीधा प्रसारण देख सकते हैं। समिति के अध्यक्ष हरिश्चंद्र अग्रवाल ने बताया कि समिति प्रयास कर रही थी कि दर्शक पर्दा उठने से लेकर अंतिम दृश्य तक का सीधा प्रसारण इंटरनेट और मोबाइल पर देख सकें। काफी हद तक हम इसमें सफल भी हुए हैं। नई पीढ़ी को रामलीला से जोड़ने की हमारी कोशिश रंग भी ला रही है। बच्चों को मोबाइल पर लाइव रामलीला देखना रास आ रहा है। |
You are the twinkle of my eyes The smile on my lips; The joy of my face; Without you I am incomplete.
Tuesday, October 15, 2013
बदल रही है रामलीला
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment