Tuesday, October 15, 2013

नवरात्रों का अभिन्न हिस्सा है कन्यापूजन

नवरात्र में शक्ति स्वरूपा मां भगवती के आराधना का तो महत्व है हीए इस दौरान कन्या पूजन का महत्व भी कम नहीं होता है। धर्मग्रन्थों में कुमारी पूजा को नवरात्र व्रत का अनिवार्य अंग कहा गया है। क्योंकि एक निश्चित उम्र की लड़की को यौवन प्राप्त करने से पहले सबसे शुभ, सबसे स्पष्ट दिमाग और स्पष्ट आत्मावाला व्यक्ति माना जाता है, कहते हैं शक्ति के आराधकों के लिए कन्याएं साक्षात माता के समान होती हैं। इनकी आराधना करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और मनोकामना पूर्ण करती हैं।
पूजी जाने वाली कन्याओं को देवी के शक्ति स्वरूप का प्रतीक बताया गया है। नवरात्र में माता के नौ रूपों क्रमश शैलपुत्री,ब्रह्माचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है।
नवरात्र में 2 से 10 वर्ष की कन्याओं के पूजन का विधान है। कहते हैं कुमारी पूजन से दुख दरिद्र दूर होता है व शत्रु का शमन होता है। इससे धन, आयु व बल की वृद्धि होती है। त्रिमूर्ति की पूजा से धर्मए अर्थ व काम की सिद्धि मिलती है। इसी तरह कल्याणी की पूजा करने से विद्याए विजय व राजसुख की प्राप्ति होती है। चंडिका की पूजा से ऐश्वर्य व धन की पूर्ति होती है। किसी को मोहित करनेए संग्राम में विजय पाने और दुख दारिद्र को हटाने के लिए शांभवी तथा कठिन कार्य को सिद्ध करने के लिए दुर्गा के रूप की पूजा की जाती है। सुभद्रा का पूजन करने से मनोकामना पूरी होती है तथा रोहिणी की पूजा से व्यक्ति निरोग रहता है।
नवरात्र में अगर उम्र के हिसाब से कन्याएं मिलें तो हर दिन उनके पूजन का विधान है। अन्यथा अष्टमी के दिन कन्याओं को आसन पर बैठाकर मां भगवती के नामों से पृथक.पृथक उनकी पूजा करनी चाहिए। कन्याओं के पूजन और उनकी आरती उतारने के बाद उनको भोजन कराते हुए वस्त्र आदि भेंट कर उन्हें विदा करना चाहिए।
नवरात्र में किया गया पूजा.पाठ व आराधना कभी निष्फल नहीं होता। अपितु श्रद्धालुओं को उसका फल निश्चित रूप से मिलता है।

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