कैसे बची रहे शक्तिस्वरूपा कन्या
नवरात्र में हमारे देश में कन्या को देवी स्वरूपा मानकर पूजा जाता है लेकिन उसका यह स्वरूप सदैव बरकरार नहीं रहता। तभी तो कन्या भ्रूणहत्याओं के आंकड़े दिल दहलाने वाले हैं। हर साल लगभग 8 लाख अजन्मी कन्याओं का कोख में ही कत्ल कर दिया जाता है। जो इस दुनिया में आ जाती हैं, उनमें से न जाने कितनी यौन शोषण और उत्पीड़न का शिकार होती हैं, तो कितनों को ही दहेज की बलिवेदी पर जिंदा जला दिया जाता है
डॉ. श्रीगोपाल नारसन भारतीय समाज में कन्या देवी के रूप में पूजनीय है। कन्या को शक्ति स्वरूपा भी कहा गया है। इस शक्ति स्वरूपा की पूजाकर ही नवरात्रों में पुण्य प्राप्ति का विधान है। घर-घर में देवी के उपासक उपवास रख कर नवदुर्गा की साधना करते हैं और कन्याओं को देवी रूप में मानकर उन्हें जिमाते हैं। आस्था स्वरूप कन्याओं के पैर भी पूजे जाते हैं। परन्तु, क्या वास्तव में हम कन्याओं के प्रति संवेदनशील हैं? क्या हम चाहते हैं कि हमारे घर में पुत्र से पहले पुत्री पैदा हो? शायद नहीं, जबकि इतिहास में भी रानी लक्ष्मीबाई समेत अनेक ऐसी वीरांगनाएं हु ई हैं, जिन्होंने राष्ट्रभक्ति और बहादुरी का इतिहास रचा। वहीं कन्या रूप से बड़ी होकर नारी बनने वाली एक मां, एक बहन, एक पत्नी को ममता की मूरत बताते हुए उसे कोमल हृदय कहा जाता है। मौजूदा समय में नारी देश में शीर्षतम पदों पर विराजमान होने से उसका सम्मान भी लगातार बढ़ रहा है। श्रीमती प्रतिभा देवी पाटिल देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति की कुर्सी को सुशोभित कर चुकी हैं तो यूपीए अध्यक्ष की कमान कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथों में है। लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर मीरा कुमार विराजमान हैं। पश्चिम बंगाल का जिम्मा ममता बनर्जी संभाल रही हैं तो देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की कमान मायावती कई बार संभाल चुकी हैं।
कानून नहीं हो रहे कारगर इतना सब होने पर भी इस कन्या की भ्रूण में ही हत्या और बड़ी होने पर उसका शोषण व उत्पीड़न के कारण नारी पर संकट के बादल मंडराए हुए हैं। उसे या तो जन्म लेने से पहले ही भ्रूणहत्या कर समाप्त किया जा रहा है या फिर उसे दहेज की बलिवेदी पर जिंदा जला दिया जाता है। हद तो यह है कि नारी को जन्म लेने से पहले ही मार डालने और अगर जिंदा बच जाए तो विवाह होने पर दहेज के लिए प्रताड़ित करने में अधिकतर नारियों की ही भूमिका रहती है। हालांकि कहीं-कहीं पुरुष भी पति, देवर, जेठ और ससुर के रूप में नारी को प्रताड़ित करने से बाज नहीं आते। हालांकि दहेज की समस्या से निपटने के लिए 1961 में ही कानून बन गया था। वहीं दहेज हत्या के लिए 1986 में कानून लाकर कड़े दंड की व्यवस्था की गई तो भी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्डस ब्यूरो के मुताबिक, देश में 2011 में 8,618 दहेज हत्याएं हुईं। साथ ही, दहेज उत्पीड़न के 6,619 मामले सामने आए, जबकि वास्तविकता इससे कहीं ज्यादा है। लेकिन सजा सिर्फ 35.8 प्रतिशत को ही हो पाई। दूसरी ओर, देश में कन्या भ्रूणहत्याओं के आंकड़े दिल दहलाने वाले हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 8 लाख अजन्मी कन्याओं का कोख में ही कत्ल कर दिया जाता है। तभी तो सरकारी आंकड़ों में भी 2001 से 2005 तक प्रतिदिन 1,900 तक कन्या भ्रूणहत्याएं हुई हैं, जिनकी वर्षवार गणना की जाए तो एक साल में 682 हजार कन्या भ्रूणहत्या होने को सरकार ने भी माना है जबकि हकीकत इससे कहीं ज्यादा भयावह हो सकती है, क्योंकि निजी अस्पतालों और घरों में की जा रही कन्या भ्रूणहत्याएं इससे कहीं ज्यादा हैं। इसी कारण पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या लगातार घट रही है। वैश्विक स्तर पर भले ही पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का प्रतिशत ज्यादा कम न हो परन्तु भारत में यह प्रतिशत लगातार बढ़ता जा रहा है, जो चिन्ता का विषय है। स्त्री-पुरुष का बिगड़ता संतुलन सन 1901 में 1,000 पुरुषों के सापेक्ष महिलाओं की संख्या 972 थी, जबकि 1991 में घटकर 927 तक घट गई। 2011 में यह संख्या प्रति 1,000 पुरुष के सापेक्ष थोड़ी बढ़ने के बाद 940 पर पहुंच गई है। केन्द्र शासित दमन और दीव में तो प्रति एक हजार पुरुष पर महिलाओं की संख्या 618 तक आ पहुंची है। इसी तरह हरियाणा में यह संख्या 877 है जो समाज में स्त्री-पुरुषों के बीच विसंगति का प्रमाण है। लेकिन मौजूदा समय में यह आंकड़ा पुरुषों की संख्या में काफी नीचे है जिससे समाज में स्त्री-पुरुष का संतुलन बिगड़ गया है। संतुलन बनाए रखने के लिए स्त्री-पुरुष दोनों को लगभग बराबरी पर आना होगा। गांव की अपेक्षा शहरों में महिलाओं पर संकट कुछ ज्यादा हावी है, तभी तो गांवों में प्रति 1,000 पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या 939 है, जबकि शहरों में प्रति 1,000 पुरुषों के सापेक्ष महिला संख्या घटकर 894 पर पहुंच गई है, जो नारी को दुनिया में न आने देने की नाजायज कोशिश का प्रमाण है। इसी तरह महिला पर अत्याचार के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं। पिछले एक साल के भीतर महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। पिछले एक साल के दौरान देशभर में महिला उत्पीड़न की 81 हजार 344 घटनाएं प्रकाश में आई हैं। महिला उत्पीड़न की सबसे ज्यादा 22 प्रतिशत से ज्यादा घटनाएं त्रिपुरा में हुईं, वहीं पश्चिम बंगाल में महिला शोषण के 16 हजार 112 मामले सामने आए हैं, जिससे इन राज्यों की हकीकत का पता चलता है। उत्तर प्रदेश में भी महिला उत्पीड़न की घटनाएं बड़े राज्यों में सबसे ज्यादा हैं। सन 2008 की अपेक्षा 2009 में महिला उत्पीड़न की वारदातों में 4 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई, वहीं 2009 से 2010 में 10 प्रतिशत से ज्यादा का महिला उत्पीड़न ग्राफ बढ़ना गंभीर चिंता का विषय है। इसी प्रकार घरेलू हिंसा कानून के 2005 में पारित होने और 26 अक्टूबर, 2011 में लागू होने बाद 2011 में ही रिकॉर्ड रूप 99,135 हिंसा के घरेलू मामले दर्ज किये गए। अमेरिका में हुए अध्ययन के मुताबिक, भारत में 35 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी रूप में घरेलू हिंसा की शिकार हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि देश में हर साल 150 लाख लड़कियां पैदा होती हैं जिनमें से एक चौथाई 15 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते जान से हाथ धो बैठती हैं यानी कन्याओं की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। कन्या को को ख में सुरक्षित रखने के लिए अनेक कानून भी बनाए गए। फिर भी अल्ट्रासाउंड के माध्यम से गर्भ में ही कन्या की पहचान कर उसकी हत्या की जाने लगी। हद तो यह है कि इस घृणित कार्य में जान बचाने का संकल्प लेने वाले डॉक्टर भी भागीदार बन गए। इसीलिए सरकार को डॉक्टरों पर भी अंकुश लगाने के लिए कानून लाना पड़ा। लेकिन पिछले 18 बरसों में आज तक कन्या भ्रूणहत्या के लिए एक सौ आरोपी भी दोषसिद्ध नहीं हो पाए। ऐसे में, सजा मिलना तो दूर की बात है। यही कारण है कि कन्या भ्रूणहत्या का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है और कन्या भ्रूणहत्या का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। हमें नवरात्र पर कन्या भ्रूणहत्या रोकने का संकल्प लेना चाहिए। देवी की असली पूजा कन्या भ्रूणहत्या रोकना है और कन्या के जन्म लेने पर मुंह लटकाने की नहीं, खुश होने की आवश्यकता है जिससे वास्तव में आधी दुनिया संख्या अपने नाम को सार्थक कर सके।
गांव की अपेक्षा शहरों में महिलाओं पर संकट कुछ ज्यादा हावी है, तभी तो गांवों में प्रति 1,000 पुरुष के सापेक्ष महिलाओं की संख्या 939 है, जबकि शहरों में प्रति 1,000 पुरुषों की तुलना में महिलाओं की आबादी 894 पर पहुंच गई है
नवरात्र में हमारे देश में कन्या को देवी स्वरूपा मानकर पूजा जाता है लेकिन उसका यह स्वरूप सदैव बरकरार नहीं रहता। तभी तो कन्या भ्रूणहत्याओं के आंकड़े दिल दहलाने वाले हैं। हर साल लगभग 8 लाख अजन्मी कन्याओं का कोख में ही कत्ल कर दिया जाता है। जो इस दुनिया में आ जाती हैं, उनमें से न जाने कितनी यौन शोषण और उत्पीड़न का शिकार होती हैं, तो कितनों को ही दहेज की बलिवेदी पर जिंदा जला दिया जाता है
डॉ. श्रीगोपाल नारसन भारतीय समाज में कन्या देवी के रूप में पूजनीय है। कन्या को शक्ति स्वरूपा भी कहा गया है। इस शक्ति स्वरूपा की पूजाकर ही नवरात्रों में पुण्य प्राप्ति का विधान है। घर-घर में देवी के उपासक उपवास रख कर नवदुर्गा की साधना करते हैं और कन्याओं को देवी रूप में मानकर उन्हें जिमाते हैं। आस्था स्वरूप कन्याओं के पैर भी पूजे जाते हैं। परन्तु, क्या वास्तव में हम कन्याओं के प्रति संवेदनशील हैं? क्या हम चाहते हैं कि हमारे घर में पुत्र से पहले पुत्री पैदा हो? शायद नहीं, जबकि इतिहास में भी रानी लक्ष्मीबाई समेत अनेक ऐसी वीरांगनाएं हु ई हैं, जिन्होंने राष्ट्रभक्ति और बहादुरी का इतिहास रचा। वहीं कन्या रूप से बड़ी होकर नारी बनने वाली एक मां, एक बहन, एक पत्नी को ममता की मूरत बताते हुए उसे कोमल हृदय कहा जाता है। मौजूदा समय में नारी देश में शीर्षतम पदों पर विराजमान होने से उसका सम्मान भी लगातार बढ़ रहा है। श्रीमती प्रतिभा देवी पाटिल देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति की कुर्सी को सुशोभित कर चुकी हैं तो यूपीए अध्यक्ष की कमान कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथों में है। लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर मीरा कुमार विराजमान हैं। पश्चिम बंगाल का जिम्मा ममता बनर्जी संभाल रही हैं तो देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की कमान मायावती कई बार संभाल चुकी हैं।
कानून नहीं हो रहे कारगर इतना सब होने पर भी इस कन्या की भ्रूण में ही हत्या और बड़ी होने पर उसका शोषण व उत्पीड़न के कारण नारी पर संकट के बादल मंडराए हुए हैं। उसे या तो जन्म लेने से पहले ही भ्रूणहत्या कर समाप्त किया जा रहा है या फिर उसे दहेज की बलिवेदी पर जिंदा जला दिया जाता है। हद तो यह है कि नारी को जन्म लेने से पहले ही मार डालने और अगर जिंदा बच जाए तो विवाह होने पर दहेज के लिए प्रताड़ित करने में अधिकतर नारियों की ही भूमिका रहती है। हालांकि कहीं-कहीं पुरुष भी पति, देवर, जेठ और ससुर के रूप में नारी को प्रताड़ित करने से बाज नहीं आते। हालांकि दहेज की समस्या से निपटने के लिए 1961 में ही कानून बन गया था। वहीं दहेज हत्या के लिए 1986 में कानून लाकर कड़े दंड की व्यवस्था की गई तो भी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्डस ब्यूरो के मुताबिक, देश में 2011 में 8,618 दहेज हत्याएं हुईं। साथ ही, दहेज उत्पीड़न के 6,619 मामले सामने आए, जबकि वास्तविकता इससे कहीं ज्यादा है। लेकिन सजा सिर्फ 35.8 प्रतिशत को ही हो पाई। दूसरी ओर, देश में कन्या भ्रूणहत्याओं के आंकड़े दिल दहलाने वाले हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 8 लाख अजन्मी कन्याओं का कोख में ही कत्ल कर दिया जाता है। तभी तो सरकारी आंकड़ों में भी 2001 से 2005 तक प्रतिदिन 1,900 तक कन्या भ्रूणहत्याएं हुई हैं, जिनकी वर्षवार गणना की जाए तो एक साल में 682 हजार कन्या भ्रूणहत्या होने को सरकार ने भी माना है जबकि हकीकत इससे कहीं ज्यादा भयावह हो सकती है, क्योंकि निजी अस्पतालों और घरों में की जा रही कन्या भ्रूणहत्याएं इससे कहीं ज्यादा हैं। इसी कारण पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या लगातार घट रही है। वैश्विक स्तर पर भले ही पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का प्रतिशत ज्यादा कम न हो परन्तु भारत में यह प्रतिशत लगातार बढ़ता जा रहा है, जो चिन्ता का विषय है। स्त्री-पुरुष का बिगड़ता संतुलन सन 1901 में 1,000 पुरुषों के सापेक्ष महिलाओं की संख्या 972 थी, जबकि 1991 में घटकर 927 तक घट गई। 2011 में यह संख्या प्रति 1,000 पुरुष के सापेक्ष थोड़ी बढ़ने के बाद 940 पर पहुंच गई है। केन्द्र शासित दमन और दीव में तो प्रति एक हजार पुरुष पर महिलाओं की संख्या 618 तक आ पहुंची है। इसी तरह हरियाणा में यह संख्या 877 है जो समाज में स्त्री-पुरुषों के बीच विसंगति का प्रमाण है। लेकिन मौजूदा समय में यह आंकड़ा पुरुषों की संख्या में काफी नीचे है जिससे समाज में स्त्री-पुरुष का संतुलन बिगड़ गया है। संतुलन बनाए रखने के लिए स्त्री-पुरुष दोनों को लगभग बराबरी पर आना होगा। गांव की अपेक्षा शहरों में महिलाओं पर संकट कुछ ज्यादा हावी है, तभी तो गांवों में प्रति 1,000 पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या 939 है, जबकि शहरों में प्रति 1,000 पुरुषों के सापेक्ष महिला संख्या घटकर 894 पर पहुंच गई है, जो नारी को दुनिया में न आने देने की नाजायज कोशिश का प्रमाण है। इसी तरह महिला पर अत्याचार के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं। पिछले एक साल के भीतर महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। पिछले एक साल के दौरान देशभर में महिला उत्पीड़न की 81 हजार 344 घटनाएं प्रकाश में आई हैं। महिला उत्पीड़न की सबसे ज्यादा 22 प्रतिशत से ज्यादा घटनाएं त्रिपुरा में हुईं, वहीं पश्चिम बंगाल में महिला शोषण के 16 हजार 112 मामले सामने आए हैं, जिससे इन राज्यों की हकीकत का पता चलता है। उत्तर प्रदेश में भी महिला उत्पीड़न की घटनाएं बड़े राज्यों में सबसे ज्यादा हैं। सन 2008 की अपेक्षा 2009 में महिला उत्पीड़न की वारदातों में 4 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई, वहीं 2009 से 2010 में 10 प्रतिशत से ज्यादा का महिला उत्पीड़न ग्राफ बढ़ना गंभीर चिंता का विषय है। इसी प्रकार घरेलू हिंसा कानून के 2005 में पारित होने और 26 अक्टूबर, 2011 में लागू होने बाद 2011 में ही रिकॉर्ड रूप 99,135 हिंसा के घरेलू मामले दर्ज किये गए। अमेरिका में हुए अध्ययन के मुताबिक, भारत में 35 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी रूप में घरेलू हिंसा की शिकार हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि देश में हर साल 150 लाख लड़कियां पैदा होती हैं जिनमें से एक चौथाई 15 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते जान से हाथ धो बैठती हैं यानी कन्याओं की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। कन्या को को ख में सुरक्षित रखने के लिए अनेक कानून भी बनाए गए। फिर भी अल्ट्रासाउंड के माध्यम से गर्भ में ही कन्या की पहचान कर उसकी हत्या की जाने लगी। हद तो यह है कि इस घृणित कार्य में जान बचाने का संकल्प लेने वाले डॉक्टर भी भागीदार बन गए। इसीलिए सरकार को डॉक्टरों पर भी अंकुश लगाने के लिए कानून लाना पड़ा। लेकिन पिछले 18 बरसों में आज तक कन्या भ्रूणहत्या के लिए एक सौ आरोपी भी दोषसिद्ध नहीं हो पाए। ऐसे में, सजा मिलना तो दूर की बात है। यही कारण है कि कन्या भ्रूणहत्या का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है और कन्या भ्रूणहत्या का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। हमें नवरात्र पर कन्या भ्रूणहत्या रोकने का संकल्प लेना चाहिए। देवी की असली पूजा कन्या भ्रूणहत्या रोकना है और कन्या के जन्म लेने पर मुंह लटकाने की नहीं, खुश होने की आवश्यकता है जिससे वास्तव में आधी दुनिया संख्या अपने नाम को सार्थक कर सके।
गांव की अपेक्षा शहरों में महिलाओं पर संकट कुछ ज्यादा हावी है, तभी तो गांवों में प्रति 1,000 पुरुष के सापेक्ष महिलाओं की संख्या 939 है, जबकि शहरों में प्रति 1,000 पुरुषों की तुलना में महिलाओं की आबादी 894 पर पहुंच गई है
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