Tuesday, October 15, 2013

आराध्य हैं नौ देवियां

आराध्य हैं नौ देवियां

Posted On September - 28 - 2013
नवरात्र 5 अक्तूबर से

दुर्गतिनाशिनी दुर्गा से संबद्ध शक्ति पूजा किन्हीं विशेष घटनाओं पर टिका हुआ सिर्फ रूढिग़त विचार नहीं है बल्कि सतत् रूप से चलने वाले देवासुर संग्राम में मानव कल्याण तथा प्रकृति अभिनंदन का शुद्ध भारतीय विचार भी है। प्राकृतिक प्रकोप क्यों होते हैं? इन प्रकोपों से बचने के उपाय क्या हैं? इन्हीं समस्यामूलक प्रश्नों के हल ढूंढ़कर चिन्तकों ने आद्या शक्ति की आराधना का विधान बनाया है ताकि मनुष्य के जीवन में नई जागृति आ सके। कदाचित इसी वजह से नवरात्र अनुष्ठान में ‘प्रकृत्यै भद्राये नम:Ó का जाप किया किया जाता है। नवरात्र में जिन नौ देवियों की आराधना की जाती है, वे अपने-अपने गुणों के कारण पूज्य हैं।
1. शैलपुत्री: इन्हें राजा हिमवान की पुत्री माना गया है और नवरात्र की पूजा में प्रथम स्थान दिया गया है। इन्हें जगन्माता कहकर भी संबोधित किया गया है और इनकी पूजा करने वाले भक्तों पर साक्षात् महादेव शिव की कृपा बरसती है। शैलपुत्री जब हिम-शिखर से धरती पर उतरती हैं तब अपने साथ अनेक जड़ी-बूटियां लेकर आती हैं जिससे मानव समुदाय का रोग-शोक दूर होता है।
2. ब्रह्मचारिणी : देवी भगवती के द्वितीय स्वरूप को ब्रह्मïचारिणी माना गया है। यह देवी अखिल जगत में ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं और वाग्देवी कहलाती हैं। इन्हें अम्भूण नामक ऋषि की पुत्री माना गया है जो ऋग्वेद के ज्ञाता थे। देवी ब्रह्मचारिणी के पास ऐसा रुद्रवाण मौजूद है जिससे ये अज्ञानता का विनाश कर देती हैं। इस देवी की पूजा-आराधना करने वाले सुख-शांति का जीवन जीते हैं।
3. चंद्रघंटा : देवी चंद्रघंटा की छवि अन्य देवियों से थोड़ा हटकर है क्योंकि इनके तीन नेत्र हैं। देवी के शरीर का रंग भी एकदम पीला है और मस्तक के ऊपर घंटे के आकार का अद्र्धचंद्र विद्यमान है जिसे सुख-समृद्धि का प्रतीक माना गया है। देवी चंद्रघंटा गृहस्थों के कल्याण हेतु धरती पर अवतरित होती हैं। संभवत: इसी वजह से गृहस्थ जन इनकी पूजा पीले रंग के गोटेदार वस्त्र पहन कर करते हैं।
4. कूष्मांडा : देवी कूष्मांडा हिमशिखर पर रहने के बजाय सूर्यमंडल पर रहती हैं जिस वजह से इनकी शक्ति दसों दिशाओं में फैली रहती है। इस देवी का रूप अष्टभुजा है और ये शुद्ध शाकाहारी हैं। इनकी आराधना करने से प्राकृतिक विपदाएं टल जाती हैं। देवी कूष्मांडा को बलि के रूप में भतुआ (शीशकोहरा) अर्पित किया जाता है।
5. स्कन्दमाता : इस देवी को शैलपुत्री का ही द्वितीय रूप माना गया है। इस संबंध में कथा है कि जब हिमालयराज की पुत्री ने महादेव शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तप किया था तब शिव की असीम कृपा से देवी की गोद में एक बालक आ गया था जिसका नाम स्कन्द रखा गया। यह देवी क्षमाशील हैं। इनकी पूजा करते समय एक श्लोक दोहराया जाता है कि पूत कपूत भले हो जाये पर माता कुमाता नहीं हो सकती है।
6. कात्यायनी : इन्हें कात्यायन नामक सिद्ध ऋषि की पुत्री माना गया है। देवी कात्यायनी का आगमन द्वापर युग में हुआ, जब भगवान श्रीकृष्ण भारत की धरती पर सदेह मौजूद थे। श्रीकृष्ण के आदेश पर यमुना नदी के किनारे देवी कात्यायनी का मंदिर बनाया गया और महारास का आयोजन किया गया। यह महारास अद्भुत था क्योंकि इसमें प्रत्येक गोपिका के साथ एक-एक कृष्ण नजर आते थे। कात्यायनी देवी सिंह वाहिनी हैं मगर इनका स्वरूप प्रकृति के परिवर्तन का परिचायक है।
7. कालरात्रि : कालरात्रि देवी विध्वंस की प्रतीक हैं क्योंकि इसी देवी ने खप्पर धारण करके रक्तबीज नामक दैत्य का संहार किया था। इनके गले में मुंडमाला लटकी रहती है और हाथ में कटार रहता है। देवी का रूप भयंकर काला है, इसलिए इन्हें काली देवी भी कहा जाता है।
8. महागौरी : इस देवी की पूजा गृहस्थ समुदाय बड़े उत्साह से करते हैं क्योंकि देवी ने शुंभ एवं निशुंभ नामक दैत्य का संहार किया था। महागौरी का रूप अत्यंत सौम्य है और इनका दूसरा नाम कौशिकी भी है।
9. सिद्धिदात्री : अखिल जगत के समस्त कार्यों को साधने वाली देवी सिद्धिदात्री कहलाती हैं। यह देवी खुद कहती हैं कि मैं जिसके ऊपर कृपा कर दूं, वह मालामाल हो जायेगा क्योंकि मेरी ही आराधना करके महादेव शिव अद्र्धनारीश्वर कहलाये थे। मैं सर्वार्थसाधिका हूं। मेरी आराधना संत-औघड़ से लेकर गृहस्थ तक सभी करते हैं।

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