दशहरे पर दूर करें दानवी वृत्तियां
आज का मानव तो दानव नहीं है लेकिन उसकी वृत्तियां दानवी हैं। आज हम दिशाहीन हो रहे हैं। अत: विजय पर्व पर मानवता को सशक्त करने का प्रयास करें। मात्र दशहरा मना लेने भर से असत्य पर सत्य की विजय नहीं होती। कर्मो में आदर्श और मर्यादाएं लाने से असत्य पर सत्य की विजय होती है। युग बदल चुका है। वह त्रेता था, यह कलयुग है। रावण असुर था, उसकी वृत्तियां भी आसुरी थीं लेकिन उसने भी अपने जमीर से गिरकर कोई कार्य नहीं किया। दानवता पर मानवता की विजय भारतवासी विजयादशमी के रूप में मनाते हैं। असुरी प्रवृत्ति के सर्वनाश का संदेशवाहक पर्व दशहरा युगों-युगों से इसीलिए मनाया जाता है ताकि मनुष्य के अंतर्मन में तामसी प्रवृत्तियां समाहित न हो सकें..
आज का मानव तो दानव नहीं है लेकिन उसकी वृत्तियां दानवी हैं। आज हम दिशाहीन हो रहे हैं। अत: विजय पर्व पर मानवता को सशक्त करने का प्रयास करें। मात्र दशहरा मना लेने भर से असत्य पर सत्य की विजय नहीं होती। कर्मो में आदर्श और मर्यादाएं लाने से असत्य पर सत्य की विजय होती है। युग बदल चुका है। वह त्रेता था, यह कलयुग है। रावण असुर था, उसकी वृत्तियां भी आसुरी थीं लेकिन उसने भी अपने जमीर से गिरकर कोई कार्य नहीं किया। दानवता पर मानवता की विजय भारतवासी विजयादशमी के रूप में मनाते हैं। असुरी प्रवृत्ति के सर्वनाश का संदेशवाहक पर्व दशहरा युगों-युगों से इसीलिए मनाया जाता है ताकि मनुष्य के अंतर्मन में तामसी प्रवृत्तियां समाहित न हो सकें..रावण तो स्वयं विद्वान था, राजनीति का कुशल पंडित था। उसे अमरत्व प्राप्त था। वह जीवन से ऊब चुका था। उसकी इच्छा मृत्युलोक त्यागने की थी। वह मोक्ष पाना चाहता था। स्वर्ग तक जाने के लिए उसके मन में सोने की सीढ़ी बनाने की भी योजना थी। उसने माता सीता का हरण अवश्य किया था लेकिन इसके पीछे उसका विचार कितना उज्जवल थाए इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने एक बार मंदोदरी से कहा था कि
दसी पड़े तो पड़न दे मन में राखो धीर।
ता कारण सीता हरी कि मुक्ति देत रघुवीर।
अर्थात मेरे दस के दस शीश भी कट जाएं तो कटने दे, मन में थोड़ा धीरज रख। मैंने सीता का हरण इसलिए किया है कि मुझे रघुवीर के हाथों मुक्ति मिले। रावण की विद्वता का अंदाज भी इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने लक्ष्मण को रावण से राजनीति की शिक्षा लेने हेतु भेजा था। युग बदल चुका है। वह त्रेता था, यह कलयुग है। रावण असुर था, उसकी वृत्तियां भी असुरी थीं लेकिन उसने भी अपने जमीर से गिरकर कोई कार्य नहीं किया। दानवता पर मानवता की विजय भारतवासी विजयादशमी के रूप में मनाते हैं। असुरी प्रवृत्ति के सर्वनाश का संदेशवाहक पर्व दशहरा युगों-युगों से इसीलिए मनाया जाता है ताकि मनुष्य के अंतर्मन में तामसी प्रवृत्तियां समाहित न हो सकें। वर्तमान परिदृश्य में रावण के पुतले के आकार के समानांतर दुष्टता में भी अभिवृद्धि हो रही है।
पापों की काली छाया भारत की धरती पर गहराती जा रही है। मानव मन दूषित होता जा रहा है। स्वार्थ-लोलुपता ने परमार्थ के प्रकांड लक्ष्य को धूमिल कर दिया है। अहंकार असंख्य विकार लेकर लोगों के दिलों में दस्तक दे रहा है। आचरण की मर्यादाएं विलोपित हो चुकी हैं। असंयमित व्यवहार आम लोगों की जीवनचर्या का हिस्सा है। वासनाओं की मद में लिप्त मनुष्य आदर्शो की लक्ष्मण रेखा लांघ चुका है। ऐसी विकट परिस्थितियों में जब दानवी वृत्तियां स्वयं मनुष्य में ही आकर समाहित हो गई हैं, हमें ऐसी वृत्तियों का समूल नाश करना होगा। आज का मानव तो दानव नहीं है लेकिन उसकी वृत्तियां दानवी हैं। आज हम दिशाहीन हो रहे हैं। अत: विजय पर्व पर मानवता को सशक्त करने का प्रयास करें। मात्र दशहरा मना लेने भर से असत्य पर सत्य की विजय नहीं होती। कर्मो में आदर्श और मर्यादाएं लाने से असत्य पर सत्य की विजय होती है।
आज का मानव तो दानव नहीं है लेकिन उसकी वृत्तियां दानवी हैं। आज हम दिशाहीन हो रहे हैं। अत: विजय पर्व पर मानवता को सशक्त करने का प्रयास करें। मात्र दशहरा मना लेने भर से असत्य पर सत्य की विजय नहीं होती। कर्मो में आदर्श और मर्यादाएं लाने से असत्य पर सत्य की विजय होती है। युग बदल चुका है। वह त्रेता था, यह कलयुग है। रावण असुर था, उसकी वृत्तियां भी आसुरी थीं लेकिन उसने भी अपने जमीर से गिरकर कोई कार्य नहीं किया। दानवता पर मानवता की विजय भारतवासी विजयादशमी के रूप में मनाते हैं। असुरी प्रवृत्ति के सर्वनाश का संदेशवाहक पर्व दशहरा युगों-युगों से इसीलिए मनाया जाता है ताकि मनुष्य के अंतर्मन में तामसी प्रवृत्तियां समाहित न हो सकें..
आज का मानव तो दानव नहीं है लेकिन उसकी वृत्तियां दानवी हैं। आज हम दिशाहीन हो रहे हैं। अत: विजय पर्व पर मानवता को सशक्त करने का प्रयास करें। मात्र दशहरा मना लेने भर से असत्य पर सत्य की विजय नहीं होती। कर्मो में आदर्श और मर्यादाएं लाने से असत्य पर सत्य की विजय होती है। युग बदल चुका है। वह त्रेता था, यह कलयुग है। रावण असुर था, उसकी वृत्तियां भी आसुरी थीं लेकिन उसने भी अपने जमीर से गिरकर कोई कार्य नहीं किया। दानवता पर मानवता की विजय भारतवासी विजयादशमी के रूप में मनाते हैं। असुरी प्रवृत्ति के सर्वनाश का संदेशवाहक पर्व दशहरा युगों-युगों से इसीलिए मनाया जाता है ताकि मनुष्य के अंतर्मन में तामसी प्रवृत्तियां समाहित न हो सकें..रावण तो स्वयं विद्वान था, राजनीति का कुशल पंडित था। उसे अमरत्व प्राप्त था। वह जीवन से ऊब चुका था। उसकी इच्छा मृत्युलोक त्यागने की थी। वह मोक्ष पाना चाहता था। स्वर्ग तक जाने के लिए उसके मन में सोने की सीढ़ी बनाने की भी योजना थी। उसने माता सीता का हरण अवश्य किया था लेकिन इसके पीछे उसका विचार कितना उज्जवल थाए इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने एक बार मंदोदरी से कहा था कि
दसी पड़े तो पड़न दे मन में राखो धीर।
ता कारण सीता हरी कि मुक्ति देत रघुवीर।
अर्थात मेरे दस के दस शीश भी कट जाएं तो कटने दे, मन में थोड़ा धीरज रख। मैंने सीता का हरण इसलिए किया है कि मुझे रघुवीर के हाथों मुक्ति मिले। रावण की विद्वता का अंदाज भी इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने लक्ष्मण को रावण से राजनीति की शिक्षा लेने हेतु भेजा था। युग बदल चुका है। वह त्रेता था, यह कलयुग है। रावण असुर था, उसकी वृत्तियां भी असुरी थीं लेकिन उसने भी अपने जमीर से गिरकर कोई कार्य नहीं किया। दानवता पर मानवता की विजय भारतवासी विजयादशमी के रूप में मनाते हैं। असुरी प्रवृत्ति के सर्वनाश का संदेशवाहक पर्व दशहरा युगों-युगों से इसीलिए मनाया जाता है ताकि मनुष्य के अंतर्मन में तामसी प्रवृत्तियां समाहित न हो सकें। वर्तमान परिदृश्य में रावण के पुतले के आकार के समानांतर दुष्टता में भी अभिवृद्धि हो रही है।
पापों की काली छाया भारत की धरती पर गहराती जा रही है। मानव मन दूषित होता जा रहा है। स्वार्थ-लोलुपता ने परमार्थ के प्रकांड लक्ष्य को धूमिल कर दिया है। अहंकार असंख्य विकार लेकर लोगों के दिलों में दस्तक दे रहा है। आचरण की मर्यादाएं विलोपित हो चुकी हैं। असंयमित व्यवहार आम लोगों की जीवनचर्या का हिस्सा है। वासनाओं की मद में लिप्त मनुष्य आदर्शो की लक्ष्मण रेखा लांघ चुका है। ऐसी विकट परिस्थितियों में जब दानवी वृत्तियां स्वयं मनुष्य में ही आकर समाहित हो गई हैं, हमें ऐसी वृत्तियों का समूल नाश करना होगा। आज का मानव तो दानव नहीं है लेकिन उसकी वृत्तियां दानवी हैं। आज हम दिशाहीन हो रहे हैं। अत: विजय पर्व पर मानवता को सशक्त करने का प्रयास करें। मात्र दशहरा मना लेने भर से असत्य पर सत्य की विजय नहीं होती। कर्मो में आदर्श और मर्यादाएं लाने से असत्य पर सत्य की विजय होती है।
No comments:
Post a Comment